राहु महादशा विंशोत्तरी चक्रमें अधिक अवधी में तीसरे स्थान पर आती है। राहु की उत्कृष्ट दशा में सब प्रकार से कल्याण , राज्यवैभव , धर्म अर्थ की प्राप्ति , तीर्थयात्रा , ज्ञान का उदय वगैरह प्राप्त होता है ।

जैसे राहु केतु की उच्च राशि क्रमशः वृषभ और वृश्चिक है । मूल त्रिकोण राशि कर्क तथा मिथुन है और स्वराशि कन्या और मीन है । राह उच्च का हो , शुभ ग्रह के साथ हो , शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तथा योग कारकयुक्त हो , केन्द्र , त्रिकोण तथा लाभस्थान में हो तो जातक को अटूट सम्पत्ति मिलती है । मुकदमे में जीत होती है । चुनाव लड़ने पर विजय होती है , तथा मंत्रीपद प्राप्त होता है । मित्र तथा अपने स्वामी या सेठ के द्वारा इष्ट वाहन की प्राप्ति होती है । पुत्रजन्म , नूतन गृह का निर्माण , धर्म चिंतन तथा महोत्सव होता है । राज्य में सन्मान , वस्त्रालंकारादि , भूषण तथा राज्य की कृपा द्वारा संपत्ति प्राप्त होती है । राहु की दशा में विदेश गमन , ज्ञानार्जन के लिए विदेशयात्रा होती है । म्लेच्छ या यवन व्यक्ति द्वारा सन्मान तथा कल्याण प्राप्ति होती है ।

राहु आठवें तथा बारहवें हों तो इष्टकारक होता है । नये – नये कार्यों का प्रारम्भ होता है । तथा मध्यम वर्ग के लोगों को विशेष सुख पहुँचता है । बड़ा अधिकार , बहुत साहस , अधिकारपद पर नियुक्ति , मित्रों के द्वारा सफलता , सब प्रकार के कार्सेयों से लाभ , स्त्री , पुत्र तथा भाई से सुख , पवित्र तीर्थों की यात्रा , ज्ञान तथा प्रभाव की वृद्धि इत्यादि बातें होती हैं । दुसरे तरफ अगर राहु पीड़ित हो तब राहु की दशा में साधारणतः माता , पिता , स्त्री की मृत्यु , पुत्र वियोग , धनहानि , व्यापार में पतन तथा नौकरी में पदावनति होते देखी गयी है । जातक का तबादला घर से बहुत दूर होता है । उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है और नये – नये रोग उत्पन्न होते हैं । राहु की क्रूर दशा में सर्प से भय , जानवर से भय , सर्वांग में रोग , शस्त्रपात , विरोध , झाड़ पर से गिरना , दुष्मनों से परेशानी – ये बातें होती है । बालक की बुद्धि बिगड़ जाती है । तनाव या महाविभ्रम याने पागल की तरह इधर – उधर घूमना पड़ता है । चारों तरफ शून्य मालूम सा प्रतीत होता है , अर्थात् कहीं पर भी कोई सहारा नहीं दीखता न ही मिलता है । डर के मारे बड़ी कठिनता से जीवन की नौका पार करता है । कष्ट इतना होता है कि प्राणांतक समझना चाहिए । बड़ी कठिन व्याधि भी अपना पासन जमा सकती है । अपने परिवार जनों से वियोग होता है । धनहानि एवं अन्यान्य उपाय भी होते हैं ।

सारांश राहु की दशा जीवन के अंत तक पहुँचा देती है । बंधन , कारागृहवास , दरिद्रता , सब प्रकार के दुःख तथा पाप , चिंता से व्याकुलता इत्यादि बातें होती हैं । नीच या नीच राशिगत राहु हो , पापग्रह से युक्त हो , मारक ग्रहों से संबंध रखता हो तो सर्प से भय , स्थान भ्रष्टता , सुख और द्रव्य का नाश , स्त्री – पुत्रों से वियोग तथा उनकी वजह से दुःख , अतिशय रोग , परदेशगमन , विवाद वृद्धि , घरेलू झगड़ों से परेशानी , भाइयों के साथ विरोध , प्रेम के क्षेत्र में समाज में अपमानित तथा व्यसनों से युक्त – ये बातें होती हैं । नीच कार्यों से जातक को प्रेम होता है और उसके द्वारा साधारण आय भी प्राप्त कर लेता है ।

सिर में रोग , वातरोग तथा अन्य रोग होते हैं । कभी कभी रोगों के बारे में पता लगाना दुर्लभ हो जाता है। आर्थिक संकट से वह तथा उसके परिवार के लोग पीड़ित होते हैं और समाज से विरोध तथा झगड़े बढ़ते हैं । छाती में दर्द , शत्रु भय , अग्निभय , विषभय , स्त्री , संतान , मांता , पिता , पितामह , पितामही , मातामही अथवा मातामह की मृत्यु , मित्र तथा बांधवों का नाश , चोरभय तथा राज्य से भय इत्यादि बातें होती हैं ।

कर्क , वृषभ , मेष — इन राशियों का राहु हो तो उसकी दशा में धन – धान्य का लाभ , विद्या , विनोद , सरकार से मान , स्त्री और नौकरी द्वारा सुख प्राप्त होता है ।

कन्या , मीन , धनु – इन राशियों का राहु हो तो , उसकी दशा में पुत्र व स्त्री की प्राप्ति , देशाधिपत्य और सुंदर वाहन की प्राप्ति होती है । लेकिन दशा के अन्त में सर्वनाश होता है ।

सिंह , वृषभ , कन्या व कर्क – इन राशियों में राहु हो तो उसकी दशा में सरकार , या राजसन्मान , वैभवशाली होता है । हाथी , घोड़े , सेना , वाहन , इन पर उनका अधिकार प्राप्त होता है । सब प्रकार के जीवों पर उपकार करनेवाला , बहुत धन और सुख से परिपूर्ण और पुत्र , स्त्री इनमें अनुरक्त होता है । ( ये राशिफल – शुभ दशा में प्राप्त होते हैं । )

राहु की दशा के पूर्व काल में – दुःख , देहपीड़ा , मध्यम भाग में बहुत स्वदेश में धनलाभ होता है । दशा के अन्त में द्रव्यनाश तथा कष्ट पाता है । स्थानभ्रष्ट , हित मित से दूर, इत्यादि बातें होती है । राहु के होते हैं । उनमें से छठा तथा आठयाँ वर्ष अनिष्टकारी होता है ।

12 वें स्थान में राहु हो तो देशत्याग , मानसिक रोग उत्पन्न करता है । स्त्री पुत्रों से विछोह होता है । कृषिधन , अन्न , सम्पत्ति का नाश होता है ।

6वें स्थान में राहु हो तो – बोर , अग्नि , राजा से भय , लाभ का नाश , अपने हितेषी का नाश , प्रमेह , गुल्म , क्षय , पित्तरोंग , त्वचा के रोग अथवा मृत्यू ये बातें होती हैं ।

8 वें स्थान में राहु गया हो तो – पुत्र , धन की हानि होती है । चोर , अग्नि , राजा से भय , तथा अपने कुनबालों से भय होता है । मृग , सिंह , भेड़िया आदि जंगली जानवरों से भय होता है ।