जैसे की जानते है छठा भाव कुंडली में रोग का होता है, वहीँ आठवाँ आयु का और पहला भाव जातक पर होने वाले प्रभाव के लिए जो क्रमशः शरीर, रोग और उसका गंभीर प्रकृति कह सकते हैं , इसको नकारने के सवाल जब भी मन में आता है तो हम ग्रहों के भाव एक पंचम और एकदश पर विचार करते है । शनि धीमा और शनै शनै रूप से रोग को ठीक होने पर जोड़ देता है , वहीँ तीव्र गति वाले ग्रहों के समय काम में रोग जल्दी से ठीक होता है ।

चिकित्सा पद्धति के रूप में दुनियां भर में अलग अलग भाग में अलग अलग प्रकार के उपचार के माध्यम से रोगों को ठीक करते हैं  जो की निम्न हैं :

  • एलोपैथी चिकित्सा उपचार :

एलोपैथी उपचार का सवाल है तो आम तौर पर सूर्य और शुक्र के संयोजन के द्वारा पहचाने में मदत करता है, सूर्य जो की एक एक डिग्री डेली गोचर का भोग करता है वहीँ सबसे समीपस्त ग्रह है जो की ऊर्जा का संरचना बहुत तेजी से करता है ।

  • इंजेक्शन  चिकित्सा उपचार :

एलोपैथी उपचार में भी अगर हम देखते हैं अष्टम द्वादश और द्वितीय भाव के साथ मंगल का सम्बन्ध हो तो इंजेक्शन के सहयता से उपचार की सम्भवता अच्छा परिणाम देता है , इसके अनुरूप किसी भी जातक के कुंडली में अगर मंगल पंचम भाव में हो तो चतुर्थ दृष्टि से अष्टम भाव को  देखेगा और अष्टम दृष्टि से द्वादश भाव को वहीँ एकादश भाव में भी अगर मंगल युति रहे तो द्वितीय और छठा भाव पर  तब भी बीमारियों के लिए इंजेक्शन की सहायता से जल्दी स्वास्थ्य लाभ मिलता है ।

  • शल्य चिकित्सा उपचार :

इंजेक्शन उपचार की भाँती ही यदि मंगल 5 -08 या 11 -08 वे भाव को दर्शाता है तो , जातक शल्य – चिकित्सा के लिए जाता है , मंगल का सम्बन्ध अष्टम भाव के साथ शल्य चिकित्सा को दर्शाता है , लेकिन अष्टम भाव के साथ सदेव ही हमें कुंडली में चिकित्सा के उपचार के बारे में बात करें तो 5 और 11 भाव पर विचार करना चाहिए ।

  • आयुर्वेदिक  चिकित्सा उपचार :

सूर्य जहाँ ग्रहों के राजा के रूप में जाना जाता है वहीँ आयुर्वेद को प्राचीन और एक प्रखर औषधि के रूप में जानते हैं , इसके लिए हम कुंडली में ग्रहों की बात करें तो सूर्य – बृहस्पति या सूर्य बुध के साथ सम्बन्ध  05 -11 भाव के साथ होने पर जान सकते हैं , अगर युति इस प्रकार हो तो जातक अवश्य ही आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए जाएं तो लाभ प्रद रहता है ।

  • होम्योपैथी  चिकित्सा उपचार :

होम्योपैथी दवा का निर्माण प्रकृति के गुणों से और भी एक्सट्रैक्शन करके निकालते है जिसके अनुरूप ग्रहों में छाया ग्रह केतु / राहु को दर्शाता है । यदि केतु 05-11 वें भाव से सम्बन्ध बनाया है तो इलाज के लिए अगर होम्योपैथी  उपचार की   सहायता ले तो काफी लाभदायक रहता है ।

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