विवाह का सही समय जानने के ज्योतिषीय रहस्य

भारतीय संस्कृति में विवाह को केवल एक सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है।
जीवन के चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) में से गृहस्थ आश्रम को सबसे प्रमुख कहा गया है, क्योंकि यही वह अवस्था है जिसमें मनुष्य परिवार बसाता है, संतानोत्पत्ति करता है और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता है।

हर कोई जानना चाहता है – शादी कब होगी?
यह प्रश्न केवल युवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि माता–पिता भी अपने बच्चों के लिए इसका उत्तर ढूँढ़ते हैं। ज्योतिष शास्त्र इस रहस्य को खोलने के लिए स्पष्ट दिशा देता है।


विवाह का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

मनुस्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में विवाह को दैविक बंधन बताया गया है।
शास्त्रों में कहा गया है:

“धर्मे च अर्थे च कामे च नातिचरितुम् अर्हसि।
एष धर्मः सनातनः।”
(मनुस्मृति)

अर्थात् – पति और पत्नी दोनों को धर्म, अर्थ और काम – इन तीनों क्षेत्रों में मर्यादा का पालन करना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार:

  • कन्या का विवाह उचित आयु में होना चाहिए।
  • विवाह केवल सुख-सुविधा के लिए नहीं बल्कि धर्म, अर्थ और संतानोत्पत्ति के लिए भी आवश्यक है।

विवाह के प्रकार

मनुस्मृति में आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं:

  1. ब्रह्म विवाह – कन्या दान कर योग्य वर को दिया जाना।
  2. दैव विवाह – यज्ञ करने वाले पुरोहित से विवाह।
  3. आर्ष विवाह – वर द्वारा गौ–दान कर विवाह।
  4. प्राजापत्य विवाह – संतानोत्पत्ति और पालन का उद्देश्य।
  5. असुर विवाह – धन देकर कन्या प्राप्त करना।
  6. गांधर्व विवाह – आपसी प्रेम से विवाह।
  7. राक्षस विवाह – कन्या का अपहरण कर विवाह।
  8. पैशाच विवाह – अचेतना या बलपूर्वक किया गया विवाह।

इनमें से ब्रह्म विवाह (अरेंज मैरिज) और गांधर्व विवाह (लव मैरिज) आज भी प्रमुख रूप से देखे जाते हैं।


विवाह से जुड़े मुख्य भाव (Bhava)

कुंडली में विवाह से संबंधित मुख्य चार भाव माने जाते हैं:

1. सप्तम भाव – जीवनसाथी और दांपत्य

  • यह भाव विवाह, जीवनसाथी और दांपत्य सुख का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि है।
  • सप्तमेश और सप्तम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव विवाह को सुखद बनाता है।

2. द्वितीय भाव – परिवार और स्थिरता

  • यह भाव विवाह के बाद के परिवार, वाणी और परंपरा का प्रतीक है।
  • यदि द्वितीय भाव मज़बूत हो तो गृहस्थ जीवन स्थिर और सुखी रहता है।

3. एकादश भाव – लाभ और इच्छापूर्ति

  • यह भाव विवाह से प्राप्त होने वाले लाभ और इच्छाओं की पूर्ति दर्शाता है।
  • विवाहयोग में सक्रिय होने पर जातक को सामाजिक और आर्थिक उन्नति मिलती है।

4. पंचम भाव – प्रेम और रोमांस

  • पंचम भाव आकर्षण, रोमांस और प्रेम का सूचक है।
  • पंचम और सप्तम भाव का संबंध बनते ही प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है।
  • शुक्र और चंद्रमा का पंचम–सप्तम योग विशेष रूप से प्रेम विवाह का द्योतक है।

विवाह का समय जानने के ज्योतिषीय संकेत

1. दशा आधारित संकेत

  • महादशा और अंतरदशा यदि सप्तम, द्वितीय या एकादश भाव से जुड़ जाए तो विवाह का समय आता है।
  • पुरुष की कुंडली में शुक्र और स्त्री की कुंडली में मंगल सक्रिय होने पर विवाह के योग पक्के हो जाते हैं।
  • दारा करक (जीवनसाथी कारक ग्रह) से जुड़ी दशाएँ भी विवाह के लिए शुभ होती हैं।
  • पंचमेश और सप्तमेश के बीच दशा संबंध हो तो प्रेम विवाह के योग बनते हैं।

2. गोचर आधारित संकेत

  • बृहस्पति (गुरु) का लग्न, सप्तम या विवाह सहम पर दृष्टि डालना शुभ होता है।
  • शनि और गुरु का डबल ट्रांज़िट सप्तम या द्वितीय भाव पर हो तो विवाह का समय पक्का होता है।
  • विवाह से पहले लग्नेश और सप्तमेश का गोचर में मिलना भी एक महत्वपूर्ण संकेत है।
  • कई बार विवाह के दिन सूर्य समेत अनेक ग्रह लग्न या सप्तम भाव में इकट्ठे होते हैं, जो विवाह को निश्चित कर देते हैं।

3. विशेष दशाएँ (Conditional Dashas)

  • द्विसप्तति समान दशा – लग्नेश और सप्तमेश परस्पर लग्न-सप्तम में हों।
  • चतुःशीति समान दशा – दशमेश दशम भाव में हो।
  • द्वादशोत्तरी दशा – विशेष नवांश स्थितियों में।
  • षोडशोत्तरी दशा – जन्मकालीन चंद्र/सूर्य की होरा पर।
  • षष्ठि हयनी दशा – सूर्य लग्न में होने पर।

क्यों असफल हो जाते हैं कई भविष्यफल?

अक्सर देखा जाता है कि विवाह का समय गलत बता दिया जाता है।
इसका कारण है – केवल एक ही आधार (दशा या गोचर) पर निर्भर रहना।

शास्त्र स्पष्ट कहते हैं कि –

“नैकत्र फलं द्रष्टव्यं योगदृष्ट्या तु संयुतम्।”

अर्थात् – केवल एक ही योग देखकर निर्णय न करें, बल्कि अनेक योगों और दशाओं के संयुक्त प्रभाव से ही फलादेश करना चाहिए।


निष्कर्ष

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विवाह का सही समय जानने के लिए मुख्य रूप से द्वितीय और सप्तम भाव देखे जाते हैं।

  • सप्तम भाव जीवनसाथी और दांपत्य का दर्पण है।
  • द्वितीय भाव विवाहोपरांत परिवार और स्थिरता का द्योतक है।
  • एकादश भाव विवाह से लाभ और इच्छापूर्ति बताता है।
  • पंचम भाव का संबंध होने पर प्रेम विवाह के योग पक्के हो जाते हैं।

👉 इस प्रकार विवाह का समय और स्वरूप केवल एक ग्रह या भाव पर निर्भर नहीं करता, बल्कि द्वितीय, सप्तम, पंचम और एकादश भावों तथा दशा–गोचर के संयुक्त विश्लेषण से ही स्पष्ट होता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. कुंडली देखकर शादी कब होगी, कैसे पता चलता है?
👉 विवाह का समय मुख्यतः दशा और गोचर से निर्धारित होता है। यदि महादशा–अंतरदशा का संबंध सप्तम, द्वितीय या एकादश भाव से बने और उसी समय गुरु–शनि का डबल ट्रांज़िट भी विवाह भावों पर हो, तो विवाह का योग निश्चित होता है।

2. क्या प्रेम विवाह पंचम भाव से देखा जाता है?
👉 हाँ, पंचम भाव प्रेम और रोमांस का प्रतिनिधि है। यदि पंचम और सप्तम भाव आपस में जुड़ जाएँ (विशेषकर शुक्र और चंद्रमा के प्रभाव में), तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है।

3. विवाह में देरी क्यों होती है?
👉 जब सप्तम भाव या उसके स्वामी पर पाप ग्रहों का प्रभाव अधिक हो, या शनि–राहु की बाधक दृष्टि हो, तो विवाह में देरी होती है।

4. क्या सभी को अरेंज मैरिज ही मिलती है?
👉 ज़रूरी नहीं। यदि पंचम भाव और सप्तम भाव का मेल हो तो प्रेम विवाह संभव है, वरना सामान्यतः ब्रह्म विवाह (अरेंज मैरिज) का योग बनता है।

5. क्या विवाह के बाद सुख–शांति भी कुंडली से देखी जा सकती है?
👉 हाँ। द्वितीय भाव और उसका स्वामी विवाहोपरांत परिवार की स्थिरता बताते हैं। यदि यह भाव मजबूत हो, तो विवाह के बाद जीवन स्थिर और सुखमय रहता है।


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