दीपावली 31 अक्टूबर या 1 नवम्बर को ही क्यों मनानी चाहिए?
दीपावली का पर्व भारतीय समाज में अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह पर्व अमावस्या के दिन मनाया जाता है, जिस दिन माता लक्ष्मी की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। हालांकि, इस वर्ष पंचांगों में तिथियों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है—कई लोग दिवाली 31 अक्टूबर को मनाने का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कुछ इसे 1 नवंबर को मनाने की सलाह दे रहे हैं। इस पर स्थिति को स्पष्ट करने के लिए, शास्त्रों और ज्योतिषीय गणनाओं का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करना आवश्यक है।
1. प्रदोष व्यापिनी अमावस्या और स्वाति नक्षत्र का महत्व:
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से दिवाली का पर्व प्रदोष व्यापिनी अमावस्या के दिन मनाया जाना चाहिए। यह वह समय होता है जब सूर्यास्त के बाद अमावस्या तिथि व्यापिनी हो और पूजा का समय प्रदोषकाल में आता हो। दिवाकर पंचांग सहित कई अन्य पंचांगों के अनुसार, अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को प्रदोष व्यापिनी रहेगी, जो लक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। साथ ही, स्वाति नक्षत्र की उपस्थिति इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। 1 नवंबर को यह तिथि और नक्षत्र उपयुक्त नहीं होंगे, इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से 31 अक्टूबर को दिवाली मनाना उचित है।
2. गणितीय त्रुटि का प्रभाव:
सूर्य सिद्धांत के प्रमुख ज्ञाता श्री विनय झा के अनुसार, कई पंचांगों में Sweph और JHora जैसे दृक्पक्षीय सॉफ्टवेयरों का प्रयोग हो रहा है। ये सॉफ्टवेयर भूकेन्द्रिक गणना का उपयोग करते हैं, जो पृथ्वी के केंद्र से संबंधित होती है, जबकि ज्योतिषीय गणनाओं के लिए भूपृष्ठीय गणना (पृथ्वी की सतह पर आधारित गणना) की आवश्यकता होती है। भूकेन्द्रिक गणना से 1 नवंबर को अमावस्या तिथि मानने में 77 मिनट 57 सेकंड की त्रुटि हो रही है, जिससे यह तिथि सही नहीं है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार, 31 अक्टूबर को भूपृष्ठीय गणना सही है, जिसके आधार पर दिवाली इसी दिन मनानी चाहिए।
3. तांत्रिक और साधनात्मक दृष्टिकोण:
दिवाली की रात तांत्रिक साधनाओं और लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। दुर्गा सप्तशती में “कालरात्रि” का उल्लेख दिवाली की रात के रूप में मिलता है, जो अमावस्या की रात होती है। तांत्रिक साधनाओं और ज्योतिषीय अनुष्ठानों के लिए अमावस्या की रात्रि को ही प्राथमिकता दी जाती है, और यह संयोग 31 अक्टूबर को बन रहा है। 1 नवंबर को दिन में दिवाली मनाना शास्त्रों के अनुसार सही नहीं है।
4. भूकेन्द्रिक और भूपृष्ठीय गणना:
श्री विनय झा ने स्पष्ट किया है कि भूकेन्द्रिक गणना का उपयोग आमतौर पर मिसाइलों और उपग्रहों की गणना के लिए किया जाता है, जबकि ज्योतिषीय गणनाओं के लिए भूपृष्ठीय गणना का उपयोग अनिवार्य है। क्योंकि हम पृथ्वी की सतह पर रहते हैं, इसलिए भूपृष्ठीय गणना ही ज्योतिषीय कार्यों के लिए प्रासंगिक है। 31 अक्टूबर को भूपृष्ठीय गणना के आधार पर ही अमावस्या की तिथि मान्य है, और लक्ष्मी पूजन के लिए यही सही समय है।
5. अन्य स्थानों और पंचांगों की गणना:
काशी, मिथिला, और अन्य प्रमुख ज्योतिषीय केंद्रों में भी 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने की पुष्टि की गई है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार, सबसे सटीक गणना 31 अक्टूबर की ही है, और इसी दिन दीपावली का पर्व मनाना शास्त्रसम्मत है।
निष्कर्ष:
शास्त्रों, पंचांगों, और ज्योतिषीय गणनाओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए। न केवल धार्मिक, तांत्रिक, और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यह तिथि सही है, बल्कि भूपृष्ठीय गणना के आधार पर भी 1 नवंबर की बजाय 31 अक्टूबर को ही अमावस्या की तिथि मान्य है। अतः हमें परंपराओं का पालन करते हुए 31 अक्टूबर को दीपावली मनानी चाहिए और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
सादर धन्यवाद, डॉ. श्याम झा (ज्योतिषविद)