जैसे आप सभी को जनतब है कि मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथे नंबर का ग्रह है। धरती पर से इसका रंग लाल दिखाई देता है इसलिए इसको लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है।

जन्म कुंडली आ चंद्र कुंडली मे लग्न भाव से पहले चतुर्थ सप्तम अष्ठम और द्वादश भाव में जौं मंगल रहे तब जातक/ जातिका मांगलिक कहलाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को सेनापति भी कहा गया है। इसलिए मांगलिक जातक/जातिका सौम्य, निडर, शूरवीर, प्रभावशाली, होशियार, केंद्रित, कुशल योद्धा अनुशासित , कुशाग्रबुद्धि संग ग़ुस्सेल प्रवृत्ति के होते हैं। वास्तविकता में उनमें से जो ऊर्जा तरंग निकलता है वह बहुत ही ज्यादा ताकतवर और प्रभावी होते हैं उनलोगों का ओरा तेज से ओतप्रोत होता है। इसलिए माना भी गया है जो एक मांगलिक जातक जातिका एक दूजे संग मांगलिक प्रवृति के कारण जीवन निर्वाह असानी से कर सकते हैं। इस सबसे अलग एक बात और भी कही जाती है कि 28 वर्ष के बाद मांगलिक प्रभाव कम हो जाता है, इसके पीछे तर्क अनुसार यही है कि ग्रह के प्रकृति से वह सेनापति है जो कि अपने इस उम्र के प्रभाव में कम हो जाता है।

वैसे तो मंगल रोग-शोग क हास्र करके जीवन को दीर्घायु करता है लेकिन ग्रह की प्रतिकूलता मनुष्य और वातावरण के बीच के सामजंस्य को भेदित करता है । ब्रह्मांड से निकलने वाली तरंग और मनुष्य के अणु से निकलने वाले तरंग जब सम्पर्क में आते हैं तब वह एक संगीत की तरह मनुष्य के जीवन में सफलता और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। वही संगीत जब असंतुलित होता है तब नाना प्रकारैण रोग विकार जन्म लेता है, विफलता मिलता है लेकिन इससे ज्यादा दुष्प्रभाव शादी और शादी के बाद कि जीवन पर पड़ता है। जिसके कारण कितने ही जातक/जातिका विवाह के बाद विवाह के सुख नहीं प्राप्त कर पाते हैं कारण :- विधवा, विधवा सामान जिवन और कभी कभी जीवनभर बिना विवाह के रह जाते हैं।

◆मंगल ग्रह का प्रभाव:-

मंगल अचानक एक्सीडेंट, चोट, ऑपरेशन, जलन , पथरी, उच्च रक्तचाप आ शस्त्र सब सँ कष्ट देता है। गर्मी से होने वाला रोग , घाव, कुष्ठ, खाज , दाद, खून सम्बन्धी रोग, गर्दन , कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, पेशाब सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, बबासिर , अल्सर, पेटखराब , दुर्घटना, कटना, फोड़ा-फुन्सी, ताप, अगिन्दाह रूप मे नाना प्रकारक बिमारी सब मंगल ही कारक होता है।

अशुभ मंगल के कारण बार बार होने वाला कष्ट सब मनुष्य के खुशहाल जीवन को जीने नहीं देता है, जिसमे कुछ बीमारियाँ उच्च रक्तचाप, वात रोग, गठिया का रोग, बार बार गंभीर चोट, बुखार बार बार आना शरीर में कम्पन होना, गुदा में पथरी शरीर मे तापमान कम होजाना, जोड़ों का कमजोर होना , खून की असुधियाँ और उससे होने वाले बीमारी। ऐसा भी देखा गया है कि बच्चे को कंसीव करने में दीक़त या कंसीव होने के बाद भी असफलता , मिसकैरेज या एक आंखों से अंधा होना अशुभ मंगल के कारण ही होता है।

इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए आदि काल से मिथिलांचल क्षेत्र (भारत के पुरवोत्तर में) ज्योतिषी फल और वैज्ञानिक तकनीकी से एक उपाय को दिए थे जिसका नाम आम और महुआ का विवाह, इस को करने से मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है। यहाँ विवाह का अर्थ विवाह से ही नहीं रहा होगा उसके रक्षार्थ से भी होगा। महुआ एक ऐसा वृक्ष है जो कि 60 वर्ष तक अपना फल देता है । उसके बाद यह पौधा औषधीय गुण से भरपूर है इसका पत्ता , बीज, खाल मनुष्य के जीवन मे स्वास्थ्य और गृह कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है।

महुआ वात, पित्त, कफ आ बलगम शांत करता है, वीर्य और धातु को बढ़ाता है। जख्म चोट इत्यादि को ठीक करता है, पेट मे बाय के दर्द , गैस और वायु विकार को समाप्त करता है। महुआ का फूल बहुत ही ठण्डा होता है जिसके कारण लिवर मजबूत करता है और उससे होने वाले गर्मी के कारण हाथ पैरों का जलन भी कम करता है। ईसके सेवन से खून शुद्धि, साँसों का रोग, टी बी कमजोरी , नामर्दी (नपुंसकता), खांसी, बवासीर, अनियमित मासिक-धर्म, शूल, अपच, वायु विकार, माताओं के छाती मे दूध क समस्या संग रक्तचाप आदि बीमारी दूर भागते हैं।

वैज्ञानिकों के कथना अनुसार महुआ में ग्लूकोज़, विटामिन, कैल्सियम , प्रोटीन, फाइबर ,फैट, खनिज इत्यादि अनेक तत्व पाए जाते हैं जो कि ऊपर के बीमारि में निदान देते हैं जो कि मंगल के कारण होता है।

इनसे अलग महुआ का वृक्ष मोटा होता है जिससे मकान निर्माण और इसके पत्ते भोजन के लिए पत्तल बनाने हेतु कार्य मे आते हैं वही इसके बीज से तेल जलावन में काफी सहायक होते हैं। मतलब वृक्ष एक गुण अनेक जिससे जीवनयापन आराम से कष्ट के समय भी चलाया जा सकता है।

मात्र मेरे लिख देने से बातों का सत्यापन नहीं हो जाता है इसलिए इसका कुछ प्रयोग लिख रहा हूँ जो कि ज्योतिष और मानव जीवन मे फायदेमंद हो सकता है।

मिर्गी रोग:-

मिर्गी मुख्यतः ज्योतिष शास्त्र अनुसार सूर्य आ मंगल के अशुभता के कारण होता है जिसको हम सब पीपल का नया पत्ता (छोट पत्ता) काली मिर्च , महुआ और सेंधा नमक को घोल के नाक में डालने से लाभ होता है , वात पित वायु जब बिगड़ जाता है तभी भी लाभ होता है।

◆ धातु रोग:-

ज्योतिष शास्त्र के मत अनुसार अष्ठम मंगल जब शुभ ग्रह द्वारा नहीं देखा जाए तब लिंग छोट और वीर्य की कमी पाई गई है जिसके कारण निसन्तान आ गर्भ से कमजोर होते हैं। और पहला कारण होता है विवाह के बाद आपसी कलह का इसका उपाय 2-3 ग्राम महुआ का छाल का आटा बना दिन मे दो बार गाय के दूध घी आ चीनी सँग सेवन सँ पुरुष का वीर्यक क्षमता मे बढ़ोतरी होता है और अष्टम मंगल से होने वाले दोष को खत्म करता है।

◆ सांप का डंक:

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर सप्तम भाव मे मंगल और दोसर भाव मे राहु रहता है और शुभ ग्रह सँ दृष्टिगत नहीं हो तो विवाह के तीन दिन के अंदर साँप दंश से मृत्यु का भय रहता है, जिसका निदान महुआ का बीज को पानी में पीस कर पीने से स्वास्थ्य में लाभ होता है।

ऐसा ही कुछ घुटनों का दर्द, घाव, माताओं के छाती से दूध का सुख जाना, नकसीर, बबासीर, खांसी, गैस मासिक धर्म पुरुषों में प्रजनन की कमजोरी, पित, गुप्तांगों में जलन इत्यादि मंगल के अशुभता के कारण ही होता है जिसको महुआ और आम के संग प्रयोग करने से खत्म किया जा सकता है।

लेकिन आजकल के परिवेश में महुआ का प्रयोग मात्र और मात्र मादकता के लिए किया जाता है, जिसके फलस्वरूप आधासीसी, सर दर्द , कमजोरी इत्यादि के रूप में अशुभ फल मिलता है।

मैं वापस फिर से आम और महु के विवाह पर आता हूँ जो की मिथिलांचल क्षेत्र में उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार के समय और विवाह के पहले कन्या (लड़की) द्वारा किया जाता है, मात्रा एक टोटके रूप में वैसे ही जैसे कुम्भ विवाह, विष्णु विवाह आदि लेकिन मात्र विवाह करने वाले टोटके से मांगलिक दोष का परिहार कहना वैसे ही होगा जैसे झूठ को सत्य कहना लेकिन एक बहुत प्राचीन समय से एक सुच्चा तकनीकी प्रक्रिया जिसका उपयोग करना बहुत ही कठिन सा हो गया है गोली की रफ़्तार परिवर्तन और ज्ञान का अपूर्णता और सांस्कृतिक पलायन।